आष्टा- हजारों श्रावक -श्राविकाओं ने दी मुनि भूतबली सागर जी को श्रद्धांजलि,। डोले में हजारों भक्त शामिल हुए ,82 वर्षीय मुनि ने आष्टा में ली अंतिम सांस।
आश्ताबकी आवाज / नवीन कुमार शर्मा
आष्टा । जैन आगम के सर्वथा अनुकूल मुनि धर्म का निर्वहन करते हुए 82 वर्षीय पूज्य भूतबली सागर जी महाराज ने बुधवार 27 मार्च की दोपहर ढाई बजे अपनी देह त्याग दी । नगर के जैन जैनेतर भक्तों पर उनकी अपार कृपा थी । संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी के शिष्यों में सबसे पहले आपने ही दीक्षा ली थी और ज्येष्ठ रहे मुनि श्री भूतबली सागर जी महाराज को सोमवार को स्वास्थ्य संबंधी प्रतिकूलता हुई थी ,इस खबर के बाद से ही देश भर में फैले मुनिश्री के शिष्यों का महाराज श्री के दर्शनार्थ नगर में आना शुरू हो गया था । बुधवार को उनका समाधिपूर्वक देहावसान हो गया ।
मुनि श्री के पार्थिव शरीर को श्रावकों के दर्शनार्थ श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मन्दिर प्रांगण में रखा गया था, जहां उनके संघस्थ शिष्य मुनि सागर जी , मौन सागरजी तथा मुक्ति सागर जी महाराज के सानिध्य में ब्रह्मचारिणी मंजुला दीदी ने शांति और समाधि पाठ किया ।
इस अवसर पर विनयांजलि सभा भी हुई ।
आपको बता दे पूज्य मुनि श्री भूतबलि सागर जी महाराज का गृहस्थ जीवन का नाम भीमसेन थाउनका
जन्म कर्नाटक प्रांत बेलगावी जिला तेरदाल गाँव मे जन्म अल्लपा जिंजुरवाड़ के यहां हुआ था।माता का नाम पद्मवा जिंजुरवाड़
था।आपकी चार बहने थी। और यह इकलौते भाई थे।
आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने प्रथम क्षुल्लक दीक्षा अजमेर में ब्रह्मचारी भीमसेन को दी थी। विनयांजलि सभा में बाल ब्रह्मचारिणी मंजुला दीदी ने मुनि के बारे बताते हुए कहा की मुनि श्री आष्टा में 3 चास्तुरमास कर चुके है, आष्टा से उन्हें आत्मीय लगा था, । किला मंदिर को सम्मेद शिखर जी का नाम भी महाराज श्री ने दिया था, और अब संयोग वश मुनिश्री ने अंतिम सांस भी इसी किला मंदिर परिसर में सब कुछ त्याग कर ली।
इस अवसर पर विधायक गोपाल सिंह इंजीनियर , राय सिंह मेवाड़ा, आदि अनेकों लोगो ने भावभीनी श्रद्धांजलि शब्दों के माध्यम से व्यक्त की।
समाधिस्थ मुनि भूतबली सागर जी का डोला निकाल कर किला मन्दिर के परिसर में विधि विधान से अंतिम संस्कार किया गया ,जहां हजारों श्रावको ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर आहुति स्वरूप श्रीफल अर्पित किए ।