मानस सम्मेलन के चतुर्थ दिवस भक्तो का उमड़ा जन सैलाब

 मानस सम्मेलन के चतुर्थ दिवस भक्तो का उमड़ा जन सैलाब

त्याग जीवन में जरूरी हे साध्वी वर्षा नगर जी


आष्टा की आवाज / नवीन कुमार शर्मा

आष्टा - नगर में आयोजित हो रहे मानस सम्मेलन के  आज चतुर्थ दिवस पर परम पूजनीय संत पंडित श्याम मानवत जी मानस मर्मज्ञ नागेश्वर धाम उज्जैन द्वारा राम कथा में सुमित्रा जी का चरित्र बड़े ही मार्मिक ढंग से सुनाया ।


मानवत जी ने कहा कि जिस समय राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए  पुत्रेष्टि यज्ञ की सलाह महर्षि वशिष्ठ ने दी थी और ऋंगी ऋषि की देख रेख में संपन्न हुआ । यज्ञ की समाप्ति के बाद ऋषि ने दशरथ को खीर का कटोरा दिया था और कहा था कि तीनों रानियों में  बराबर बांट देना प्रसाद सुमित्रा के पास आया तो बिना प्रसाद खाए ही सुमित्रा ने कैकई को वचन दिया कि मुझे जो पुत्र होगा वही भी मैं तुम्हें सौंप दूंगी। प्रसाद ग्रहण करने के बाद सुमित्रा को दो पुत्र हुए पहला पुत्र लक्ष्मण कौशल्या के पुत्र राम की सेवा में दे दिया और दूसरा पुत्र अपने वचन के अनुसार केकई को सौंप दिया। आगे प्रवचन में श्री मानवत ने जी ने कहा आत्मा कभी छोटी बड़ी नहीं होती परंतु छोटा होता है व्यक्ति का मन, मन की तुलना चंद्रमा से की गई है जब हम दीप प्रज्वलित करते हैं तो मंत्र बोलते हैं चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत । श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च हृदयात्सर्वमिदं जायते ॥अर्थात चंद्रमा जातक के मन का स्वामी होता है।

हमारा मन चंद्रमा के जैसा है जैसे चंद्रमा छोटा होता जाता है अंधकार छा जाता है

जिस प्रकार से चंद्रमा बड़ा होता जाता है चांदनी ही चांदनी आ जाती है।

श्री पंडित मनावत्तजी ने रामायण की विस्तृत व्याख्या की जनमानस भवविहोर हो गया।


साध्वी श्री अन्नपूर्णा गिरी जी वर्षा नागर

मानस मनी ने अपने उद्बोधन में नारद मोह का बड़ा अच्छा प्रस्तुत किया उन्होंने कहा . एक बार नारद जी तप कर रहे थे. इंद्र ने समझा कि नारद स्वर्ग का राजा बनने की इच्छा से तप कर रहे हैं, तो उन्होंने कामदेव को नारद जी की तपस्या भंग करने को भेजा. कामदेव के तमाम प्रयास के बाद नारद जी का ध्यान भंग नहीं हुआ तो काम डर गया और नारद जी से क्षमा याचना करके लौट गया.

आज मैं स्कूल गई तो बच्चों ने मुझसे पूछा आप संन्यास क्यों ले रहे हैं मैंने उन्हें बताया कि  सन्यास में जो आनंद है वह मानव जीवन में कहा, त्याग जीवन में जरूरी है, अपने ईस्ट को पूजिए ।

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